
छत्तीसगढ़ – राज्य के व्याख्याता संवर्ग जो मिडिल स्कूल हेड मास्टर के पद से पदोन्नत हुए है, प्राचार्य पदोन्नति में वरिष्ठता मिलना तय है। लेकिन विभिन्न वेब न्यूज के माध्यम से पता चल रहा है कि हाइकोर्ट के निर्णय की अनुचित व्याख्या की जा रही है।हाइकोर्ट ने कुछ मामलों पर अनुमति दी है। पिछले 11 साल से डिविजन बेंच फैसला देते आ रही है कि प्राचार्य पदोन्नति में मिडिल HM से प्रमोट हुए व्याख्याता को पूर्व सेवा से वरिष्ठता का लाभ दिया जाए।
वर्तमान में इस मामले में करीबन 40 से अधिक रीट याचिका लगी हैं।आज नारायण प्रकाश तिवारी मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई के लिए बढ़ गई है। जितने भी याचिकाकर्ता है,सब अपने अपने काउंसिल के माध्यम से मेंशन करा जल्द सुनवाई के लिए आग्रह करवाए। कई केसेस में अगली सुनवाई की डेट नहीं मिली है।
मेरी संज्ञान में टी संवर्ग से ज्यादा याचिका पता नहीं चला है। यदि टी संवर्ग वाले भी प्रभावित होंगे,ऐसे व्याख्याता जो मिडिल hm से प्रमोट हुए है। अपना हक लिजिए। भारत का संविधान आपके साथ है। माननीय न्यायालय की डिविजन बेंच आपके पक्ष है।जो अनुचित व्याख्या कर रहा है उसकी बातों में ध्यान मत दीजिए।*
ये तीन फैसले माननीय न्यायालय की डिविजन बेंच ने दी है।
1.टीका राम मंडावी वर्सेज स्टेट ऑफ छ.ग.2022की डिवीजन बेंच ने कहा कि (a)एक बार जब राज्य सरकार प्रधान पाठक मिडिल स्कूल(स्नातकोत्तर) के पद को व्याख्याता के पद के समकक्ष मानती है तो उन व्याख्याताओ द्वारा प्रधान पाठक मिडिल स्कूल (स्नातकोत्तर) के रूप में प्रदान की गई सेवा को ध्यान में नहीं रखना, उचित नहीं है। सीधी चयनित व्याख्याता और मिडिल HM से पदोन्नत व्याख्याता अलग अलग वर्ग में आते है, इनके साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाना चाहिए। यह भारत के संविधान अनुच्छेद 14 के अनुसार विधिसम्मत है।
(b) प्रमोशन नियमों में सेवा की अवधि (Qualifying service) की गिनती के लिए हेड मास्टर रूप में कार्यकाल शामिल करने से असमानता नहीं होती क्योंकि यह नियम वैध रूप से तय किए गए थे।इसलिए प्रमोशन में प्रधानपाठक सेवा अवधि को गिनना संवैधानिक और वैध है।
2.उपरोक्त बिंदु क्रमांक 1 में लिखी हुई उद्धरण को WPS 502/2022 रवि कांत पटेल बनाम स्टेट ऑफ छ.ग में दोहराया। एवं इस केस में शासन की तरफ से यह बात रखी गई है कि प्रधान पाठक(मिडिल स्कूल) जिनको व्याख्याता के पद पर पदोन्नति किया गया था, उनके नाम के आगे प्रधान पाठक संवर्ग में उनकी वरिष्ठता का ध्यान रखा गया है और आगे पदोन्नति के लिए विचार किए जाने पर भी किसी भी तरह से अलाभकारी स्थिति में नहीं रहेंगे और याचिकाकर्ताओं की हितों का ध्यान रखा जाएगा।
तपश्चात माननीय न्यायालय के डिविजन बेंच ने कहा कि Who have been promoted from the post of headmaster (middle school )(postgraduate) shall be taken from the date of their appointment as Head Master (middle school) (postgraduate)
*इस बात को शासन ने अपने रिप्लाई में भी दिया है,और कहा कि हम किसी अलाभकारी स्थिति निर्मित नहीं होने देंगे।
3.जो बातें टीकाराम मंडावी केस में हुई,रविकांत पटेल केश में,उसी को wps 4447 में दोहराई गई और कहा कि 2019 के नियम की नियम 15( 1)भेदभावपूर्ण और संविधान के विरुद्ध है और इसलिए 2019 के नियमों के नियम 15(1) के तहत नए स्पष्टीकरण तैयार होने तक प्रधान पाठक मिडिल स्कूल (स्नातकोत्तर) के पद से पदोन्नत व्याख्याता की योग्यता सेवा(qualifying service)हेड मास्टर मिडिल स्कूल !स्नातकोत्तर)के रूप में उनकी नियुक्ति से की जाएगी।
रविकांत पटेल मामले 2022 में शासन की ओर आदरणीय भारती दासन सर,तत्कालीन सचिव से कोर्ट में एफिडेविट दिया है कि प्रधान पाठक(मिडिल स्कूल) जिनको व्याख्याता के पद पर पदोन्नति किया गया था, उनके नाम के आगे प्रधान पाठक संवर्ग में उनकी वरिष्ठता का ध्यान रखा गया है और आगे पदोन्नति के लिए विचार किए जाने पर भी किसी भी तरह से अलाभकारी स्थिति में नहीं रहेंगे और याचिकाकर्ताओं की हितों का ध्यान रखा जाएगा।
उपरोक्त तीन बार के डिवीजन बेंच के निर्णय से पता चलता है कि डिवीजन बेंच के स्पष्ट निर्देश के बावजूद 2014 से 2025 तक, इन 11 वर्षों में 15 (1) का स्पष्टीकरण तैयार नहीं हुआ है।
यह देश संविधान से चलता है। संविधान से उपर न कोई व्यक्ति है,न कोई अधिकारी और न कोई सरकार। कोई भी हो संविधान को ताक में रखकर मनमानी नहीं कर सकता और यह यदि ऐसा कर रहा है तो उनका यह व्यवहार संविधान के नियमों के विरुद्ध है। भले देर से ही सही लेकिन न्याय मिलेगा जरूर।
इस लेख के माध्यम से राज्य भर के व्याख्याता ई एवं टी संवर्ग, जो प्रधान पाठक मिडिल स्कूल से पदोन्नति हुए हैं, अपनी पूर्व सेवा गणना(Qualifying service) से वरिष्ठता प्राप्त करने पीछे ना रहे। दिनांक 30/ 04/2025 को जारी पदोन्नति सूची में ई एवं टी संवर्ग के नियमित व्याख्याता कम से कम 300 की संख्या में शामिल होंगे। डीपीसी होने से कुछ नहीं होता है, यदि डीपीसी असंवैधानिक हो तो वह रद्द हो सकती है।
पुनः कहूंगा संविधान से बड़ा कुछ भी नहीं, कोई हमारे मौलिक अधिकारों का हनन कानून के नजरों में धूल झोंक कर ज्यादा दिन तक नहीं कर सकते।
इस केश में कुछ व्याख्याता साथियों की ओर से याचिक(रीट) हमारे लीगल पैनल से विद्वान अधिवक्ता अंचल कुमार मात्रे जी द्वारा लगाई जा रही है।
यदि कुछ व्याख्याता छूट गए हो तो, कॉल कर सकते हैं।
धैर्य रखें न्याय मिलेगा।
✍🏻 विनोद कुमार कोशले,
संवैधानिक एवं सर्विस से संबंधित लीगल मामलों के जानकार,
को फाउंडर सोज़लिफ
मो.6261017911
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