November 21, 2024

पदोन्नति में आरक्षण मामले पर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार मौन,अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं।

खबर शेयर करें

छत्तीसगढ – अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के पदोन्नति में आरक्षण मामले में माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में दिनांक 16.4.2024 को फैसला सुनाते हुए राज्य के भाजपा सरकार के पाले में डाल दिया है। माननीय उच्च न्यायालय ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा दिनांक 22/ 10/2019 को लाए गए अधिसूचना को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर पारित निर्णय एम.नागराज,जरनैल सिंह प्रथम, बी के पवित्रा द्वितीय, जनरल सिंह द्वितीय फैसले का अध्ययन कर परिपालन करते हुए कैडर वाइस मात्रात्मक डाटा एकत्र कर निर्धारित मानदंडों के आधार पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16(4) क के तहत निहित प्रावधानों के आधार पर पदोन्नति में आरक्षण के लिए नीति बनाने राज्य सरकार को निर्देशित किया है।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ की 11 सीटों के लिए तीन चरणों में निर्वाचन संपन्न होना निर्धारित है, जिसमें प्रथम चरण का चुनाव 19 अप्रैल को बस्तर अनुसूचित जनजाति सीट पर संपन्न हो गया। दूसरी चरण यानी 26 अप्रैल को राजनांदगांव ,महासमुंद और कांकेर सीट पर 26 अप्रैल को मतदान होगा।इन लोकसभा सीटों में एससी,और एसटी वर्ग के मतदाताओं का खासा प्रभाव है। राजनांदगांव महासमुंद और कांकेर से अनुसूचित जनजाति एवं जाति बाहुल्य है, क्योंकि राज्य में अनुसूचित जनजाति की संख्या 32% है। अब जनजाति वर्ग भी अपने वोट के महत्व को समझती है। इस कारण पदोन्नति में आरक्षण फैसले पर प्रदेश की विष्णु सरकार की मौन रहने से आगामी वोटिंग में काफी फर्क पड़ सकती है।
वर्तमान में सूबे का मुख्यमंत्री खुद अनुसूचित जनजाति वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन इस मामले में भाजपा के मुख्यमंत्री द्वारा चुप्पी साधने से पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। पिछली कांग्रेस सरकार की पदोन्नति में आरक्षण मामले में ढुलमूल नीति से राज्य की अनुसूचित जनजाति वर्ग खासा नाराज थी,इस कारण सरगुजा एवं बस्तर संभाग के अधिकांश सीटों से विधानसभा चुनाव में हाथ धोना पड़ा था। 71 सीटों वाली पूर्ण बहुमत की भूपेश सरकार को महज 35 सीटों में संतुष्ट करना पड़ा। पदोन्नति आरक्षण मामले में भूपेश सरकार को स्पष्ट नीति बनाने हेतु दबाव स्वरूप आदिवासी,अनुसूचित जाति समाज के बैनर तले कई बड़े आंदोलन हुए एवं इस मामले में दर्जन भर से अधिक युवा जेल भी गए, लेकिन तत्कालीन भूपेश सरकार की कान में जूं तक नहीं रेंगी। नतीजन तत्कालीन भूपेश सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। इधर कोर्ट में भी तत्कालीन भूपेश सरकार की महाधिवक्ता द्वारा डिवीजन बेंच के समक्ष पदोन्नति नीति बनाने में त्रुटि मानते हुए माफी मांगी गई थी,इस कारण बीते 4 वर्ष से बगैर आरक्षण के पदोन्नति हुई ,इससे राज्य के अनुसूचित जनजाति अनुसूचित जाति वर्ग का खासा नाराज हुए और पूर्ववर्ती कांग्रेस की भूपेश सरकार को आसमान से जमीन में लाकर पटक दिया।
ठीक ऐसा ही गणित वर्तमान लोकसभा चुनाव में भी राज्य के अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति वर्ग खेल बिगाड़ सकते हैं ।दो चरणों में मतदान होना बाकी है, तीसरे चरण का चुनाव मैदानी लोकसभा क्षेत्र में है ।यहां की जनसंख्या अनुसूचित जाति बाहुल्य है,क्योंकि बिलासपुर संभाग अंतर्गत लोकसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है,इस वर्ग के मतदाता खेला बिगाड़ सकते है । यदि जल्द ही छत्तीसगढ़ की भाजपा शासित विष्णु सरकार पदोन्नति में आरक्षण मामले में कोई आधिकारिक घोषणा या बयान नहीं देंगे तो इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। मोदी जी की अबकी बार 400 पर आंकड़े में सेंध लग सकता है। हालांकि प्रदेश की जनजाति वर्ग के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जी कई मंचों में बयान दे रहे हैं कि आरक्षण ना कभी खत्म होगा और ना ही हम करेंगे, लेकिन यह भाजपा की घिसी पिटी भाषण है,जो भाजपा के बड़े नेता चुनाव के ठीक सामने जनता के बीच जोश के साथ देते हैं,लेकिन यह बयान नीति बनाने के लिए नही दिखता। राज्य के युवा वर्ग भी पदोन्नति आरक्षण मामले को बारीकी से देख रहे हैं,क्योंकि पदोन्नति में आरक्षण नीति बनाने में विलंब होने से इसका नुकसान युवा वर्ग को भुगतना पड़ेगा,क्योंकि पहले से आरक्षित वर्ग के भरे पद रिक्त नही होने से नई आरक्षित वेकेंसी विज्ञापित नही होगी।इस मामले में राज्य के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के सामाजिक संगठनों ने बैठक करना शुरू कर दिया है। तत्काल पदोन्नति में आरक्षण मामले में कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो इसका सीधा प्रभाव चुनाव पर पड़ेगा।
अब सवाल यह है कि क्या भाजपा शासित विष्णु सरकार द्वारा पदोन्नति में आरक्षण मामले में कोई आधिकारिक बयान या घोषणा करते हैं? इस सवाल का जवाब राज्य की अनुसूचित जाति,जनजाति वर्ग की जनता ढूंढ रही है ।
आगामी 26 अप्रैल एवं 7 मई को होने वाली चुनाव खास है, ज्यादातर सीट में 7 मई को मतदान होगी और राज्य की अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वर्ग के 45% जनता अपने अधिकारों के प्रति सजग दिखती है। अब देखना यह है कि क्या पूर्ववर्ती कांग्रेस की भूपेश सरकार की तरह पदोन्नति में आरक्षण मामले में वर्तमान भाजपा की विष्णु सरकार सरकार भी ढुल मूल रवैया अपनाती है या कोई ठोस अधिकारी घोषणा या बयान देती है ।चुनावी मौसम है इसका परिणाम वोटिंग में जरूर दिखेगा।